Mandali Review: रामलीला के कलाकारों की जिंदगी दिखाती फिल्म, अभिनय से सजी दिल छूती कहानी


स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। हिंदी सिनेमा में कई फिल्‍मों में रामलीला का संक्षिप्‍त चित्रण देखने को मिला है। हालांकि, रामलीला में काम करने वाले कलाकारों की जिंदगी को बहुत कम ही कहानियों में पिरोया गया है। फिल्‍म ‘मंडली’ इसी विषय पर आधारित है। यह रामलीला में कार्य करने वाले कुछ कलाकारों के जीवन में घटी घटनाओं और उनके अनुभवों से प्रेरित है।

क्या है मंडली की कहानी?

कहानी रामलीला में काम करने वाले पुरु उर्फ पुरुषोत्‍तम चौबे (अभिषेक दूहन) की है। पुरु को उसके चाचा रामसेवक (विनीत कुमार) ने रामलीला में काम करने के प्रशिक्षित किया है। रामलीला में पुरु का चचेरा भाई सीताराम चौबे (अश्‍वथ भट्ट) राम की भूमिका में विख्यात है।

रामलीला में भीड़ जुटाने के मकसद से आयोजक पहले आइटम सॉन्ग का आयोजन करते हैं। रामसेवक इसके सख्‍त खिलाफ होते हैं। रामलीला के दौरान एक दिन सीताराम की गलती से उसका मंचन नहीं हो पाता है। उन्‍हें काफी अपमान का सामना करना पड़ता है।

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इस घटना से आहत रामसवेक कभी रामलीला न करने का निर्णय लेते हैं। रामलीला में लक्ष्‍मण की भूमिका निभाने वाला पुरु सांसद राजीव नारायण सिंह (कंवलजीत सिं‍ह) के बेटे ओंकार सिंह के कार्यालय में चपरासी है। वह ओंकार के कालेज में होने वाले अहिल्‍या उद्धार नाटक में लक्ष्‍मण बनता है।

वहां बिट्टन कुमारी (आंचल मुंजाल) के साथ पहले अनबन होती है, फिर प्रेम उसके बाद विवाह। बिट्टन का कड़वा अतीत रहा है। घटनाक्रम मोड़ लेते हैं। ओंकार और पुरु के बीच रार छिड़ जाती है। रामलीला मंचन के पहले राम-लक्ष्‍मण की आरती उतारने के दौरान आमना-सामना होने के बाद ओंकार अपनी भड़ास निकालता है।

वह पुरु को भांड कहता है। इस पर दोनों में मारपीट होती है। पुरु को रामलीला से हटने को कहा जाता है। इस परिस्थिति में पुरु के आत्‍मसम्‍मान और ओंकार के रुतबे का टकराव रामलीला होने देगा? कहानी इस संबंध में हैं।

कैसी है स्टोरी और स्क्रीनप्ले?

सीमित बजट में बनी यह फिल्‍म रामलीला के पीछे की कई सच्‍चाई को बयां करती है, जिस पर शायद ही किसी की नजर जाती हो। ‘मंडली’ इस कला के प्रति उदासीनता की ओर भी ध्यान इंगित करती है। पल्‍लव जैन, विनय अग्रहरि और राकेश चतुर्वेदी ओम द्वारा लिखी कहानी और उसके पात्रों की सादगी दिल को छू जाती है।

वहीं, राकेश चतुर्वेदी ओम द्वारा निर्देशित यह कहानी बीच-बीच में भक्ति के सागर में डुबो देती है। ‘मंडली’ बताती है कि इस कला को जीवित रखने के कलाकारों में उसके प्रति कितना समर्पण, लगाव और भक्ति है।

तकलीफों के बावजूद वह अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करते। कलाकारों के प्रति लोगों की मानसिकता को भी फिल्‍म स्‍पर्श करती है। फिल्‍म अपनी सभ्‍यता और संस्‍कृति को समेटने की ओर भी इशारा करती है। फिल्‍म का क्‍लाइमैक्‍स प्रभावी और शानदार है। 

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कैसा है कलाकारों का अभिनय?

कलाकारों में लक्ष्‍मण बने अभिषेक दुहन रामलीला के प्रति समर्पण, त्‍याग और दर्द को कामयाबी के साथ पेश करते हैं। वह उन कलाकारों का प्रतिनिधित्‍व करते हैं, जो इस कला को जीवित करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। बिट्टन बनी आंचल मुंजाल के साथ उनकी केमिस्‍ट्री अच्‍छी लगती है।

आंचल ने अपने किरदार को बहुत खूबसूरती से निभाया है। विनीत कुमार की मौजूदगी असरदार है। उनके अलावा सहयोगी भूमिका में आए रजनीश दुग्‍गल, कंवलजीत, नीरज सूद अपनी छाप छोड़ते हैं। फिल्‍म का खास आकर्षण संदीप नाथ के लिखे गीत और राहुल मिश्रा का संगीत है, जो समां बांध देता है। रामलीला के लिए पंकज मुरारी मुद्गल का संगीत उल्लेखनीय है।



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