Pippa Movie Review: भारत-पाक युद्ध की पृष्ठभूमि में रिश्तों की गहराई नापती फिल्म, ईशान की सधी अदाकारी


स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। भारत-पाकिस्‍तान के बीच वर्ष 1971 में हुए युद्ध के परिणामस्‍वरूप बांग्‍लादेश का जन्‍म हुआ, जिसे पहले पूर्वी पाकिस्‍तान कहा जाता है। हाल ही में रिलीज हुई फिल्‍म मुजीब: द मेकिंग आफ ए नेशन बांग्‍लादेश के संस्‍थापक शेख मुजीबुर्रहमान की जिंदगी पर आधारित थी।

उसमें देश की आजादी को लेकर उनके संघर्ष को गहनता से दिखाया गया था। अब पिप्‍पा आई है। यह फिल्‍म ब्रिगेडियर बलराम सिंह मेहता द्वारा लिखी किताब ‘द बर्निंग चाफीज’ पर आधारित है। भारतीय सेना की 45वें कैवरली रेजीमेंट (45 Cavalry regiment) का नेतृत्‍व करने वाले कैप्टन बलराम सिंह मेहता 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पूर्वी मोर्चे पर गरीबपुर की लड़ाई में बहादुरी से लड़े थे।

इस युद्ध में उनके बड़े भाई की भागीदारी भी रही। वहीं, उनकी बहन भले ही सरहद पर नहीं गई, लेकिन खुफिया एजेंसी के लिए काम करती थी, जहां पर वह गोपनीय संदेशों को डीकोड करती है।

क्या है पिप्पा की कहानी?

फिल्‍म 1947 में देश विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्‍तान और पश्चिमी पाकिस्‍तान की परिस्थितियों के बारे में जानकारी देती है।

फिर साल 1970 का जिक्र आता है, जब पाकिस्‍तान में पहली बार आम चुनाव में शेख मुजीबुर्रहमान की पार्टी बांग्‍लादेश आवामी लीग भारी बहुमत से जीतती है, लेकिन पाकिस्‍तान के राष्‍ट्रपति जनरल याहया खान नतीजों को मानने से इनकार कर देते हैं और मुजीब को गिरफ्तार कर लिया जाता है।

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इससे पूर्वी पाकिस्‍तान में रोष बढ़ जाता है। वे स्‍वतंत्र देश की मांग को लेकर आंदोलन करना शुरू कर देते हैं। आंदोलन को कुचलने के लिए पाकिस्‍तानी सेना कई सामूहिक नरसंहार को अंजाम देती है। औरतों को अपनी अय्याशी के लिए गुलाम बना लेती है।

उन परिस्थितियों में लाखों लोग भारत में आकर शरण ले रहे होते हैं। इस बीच भारत को पाकिस्‍तान युद्ध के लिए ललकारता है। तीन दिसंबर को वह भारत पर हमला कर देता है। 13 दिनों बाद पाकिस्‍तानी सेना समर्पण कर देती है और नए देश बांग्‍लादेश का उदय होता है।

कैसा है पिप्पा का स्क्रीनप्ले?

इस फिल्म का नाम एम्फीबियस वॉर टैंक पीटी-76 पर आधारित है, जिसे ‘पिप्पा’ के नाम से बुलाया जाता था, जो घी के एक खाली डिब्बे (कनस्तर) की तरह आसानी से पानी पर तैरता है। इस टैंक ने लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी।

कैप्‍टन बलराम मेहता उर्फ बल्‍ली (ईशान खट्टर) का इस टैंक के प्रति प्रेम कहानी की शुरुआत में ही दर्शा दिया गया है। मेहता के पिता भी फौजी थे। उनके बड़े भाई राम मेहता (प्रियांशु पेन्‍युली) ने 1965 के युद्ध में हिस्‍सा लिया था। बहन राधा (मृणाल ठाकुर) मेडिकल की पढ़ाई कर रही होती है। अचानक से युद्ध का एलान होने पर राम को ड्यूटी पर वापस आने का संदेश आता है।

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निर्देशों की अवहेलना करने की वजह से बलराम को दिल्‍ली में आफिस डेस्‍क पर भेज दिया जाता है। हालात मोड़ लेते हैं बलराम को युद्ध के मोर्चे पर भेजा जाता है। वहीं नाटकीय घटनाक्रम में राधा खुफिया एजेंसी के लिए गोपनीय संदेशों को डीकोड करने का काम शुरू कर देती है।

एयरलिफ्ट बना चुके राजा कृष्‍ण मेनन की यह फिल्‍म मुख्‍य रूप से भाई-बहनों की कहानी है। इसमें राजनीतिक पहलुओं को शामिल नहीं किया गया है। न ही पाकिस्‍तान की बर्बरता और जुल्‍म को समुचित तरीके से दिखाया गया है। यह पीटी-76 की कार्यशैली को दर्शाने के साथ युद्ध में इसकी भूमिका को दर्शाता है, लेकिन उसमें कोई रोमांच नहीं है।

पिप्‍पा को बलराम अपनी जान कहते हैं, लेकिन दोनों के बीच उस जुड़ाव को कहानी में स्‍थापित नहीं कर पाए हैं। रविंद्र रंधावा, तन्‍मय मोहन और राजा कृष्‍ण मेनन द्वारा लिखी गई फिल्‍म की पटकथा में युद्ध पर गहनता से काम करने की जरूरत थी।

युद्ध की कहानी को पर्दे पर देखना तब रोमांचक‍ लगता है, जब दुश्‍मन की चालबाजियां और तैयारियां देखने को मिलती हैं और वह उसमें नाकाम रहता है। यहां पर पाकिस्‍तानी पक्ष को समुचित तरीके से दर्शाया नहीं गया है। पाकिस्‍तानी गिरफ्त से जब राम निकलता है तो कमरे में बंद बेबस महिलाओं का दृश्‍य रोंगटे नहीं खड़े करता।

भारतीय सेना पड़ोसी देश को आजाद कराने के बाद स्‍वदेश आ जाती है। यह पहलू महत्‍वपूर्ण है। उस पहलू को भी यह फिल्‍म बहुत संजीदगी से नहीं दर्शा पाती है।

कैसा रहा कलाकारों का अभिनय?

ईशान खट्टर बेहतरीन अभिनेता हैं। उन्‍होंने बलराम की भावनाओं को आत्‍मसात करने का प्रयास किया है, लेकिन सैन्‍य अफसर जैसा दमखम दिखाने की कमी उनमें नजर आती है।

जब वह बांग्‍लादेश से आए शरणार्थियों को देखने जाता है तो मंजर देखकर लगता ही नहीं कि बलराम को पीड़ा हुई है या दर्शक उस दर्द को महसूस कर रहे हैं। प्रियांशु पेन्‍युली अपनी भूमिका में जंचे हैं। उन्‍होंने सख्‍त बड़े भाई के साथ जिम्‍मेदार सैन्‍य अधिकारी की भूमिका को समुचित भावों के साथ निभाया है।

राधा बनीं मृणाल ठाकुर के किरदार पर कोई मेहनत नहीं की गई है। उनके किरदार की कोई बैकस्‍टोरी नहीं है। आखिर में उन्‍हें जिस तरह से गोपनीय कोड को सुलझाते दिखाया है, वह जल्‍दबाजी में निपटाया गया लगता है। मां की भूमिका में सोनी राजदान से कोई सहानुभूति नहीं होती।

वहीं चीफी (कैप्टन बलराम के सीनियर) की भूमिका में चंद्रचूड़ राय और स्‍पीडी (कैप्टन बलराम के साथी) की भूमिका में अनुज सिंह दुहन ठीक लगे हैं। सैम मानेकशा की संक्षिप्त भूमिका में कमल सदाना हैं। अगले महीने सैम मानेकशा पर फिल्‍म सैम बहादुर आ रही है, उसमें विक्‍की कौशल सैम की भूमिका में होंगे। देखना होगा वो फिल्‍म किस पहलू को उठाती है।



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