Yaariyan 2 Review: भाई-बहन के रिश्तों की खट्टी-मीठी कहानी, थोड़ा गम थोड़ी खुशी और ढेर सारा प्यार


प्रियंका सिंह, मुंबई। साल 2014 में रिलीज हुई फिल्म यारियां को अब नौ साल बाद फ्रेंचाइजी के तौर पर आगे बढ़ाया गया है। उस फिल्म का निर्देशन करने वाली अभिनेत्री और निर्देशिका दिव्या खोसला कुमार ने यारियां 2 में अभिनय किया है। पिछली फिल्म दोस्ती-यारी और प्यार-मोहब्बत पर आधारित थी।

क्या है यारियां 2 की कहानी?

इस बार कहानी में दोस्ती और प्यार है, लेकिन कजिन्स के बीच में। ‘यारियां 2’ साल 2014 में रिलीज हुई मलयालम फिल्म बैंगलोर डेज की हिंदी रीमेक है। शिमला में रहने वाली लाडली छिब्बर (दिव्या खोसला कुमार) सौंदर्य प्रतियोगिता में भाग लेना चाहती है, लेकिन उसकी सिंगल मां (लिलेट दुबे) को उसकी शादी की चिंता है।

वह उसकी अरेंज मैरिज अभय सिंह कटियाल (यश दासगुप्ता) से कराना चाहती है। अभय का एक अतीत है। लाडली की शादी में उसके दोनों कजिन भाई शिखर रंधावा (मीजान जाफरी) और बजरंग दास खत्री (पर्ल वी पुरी) भी पहुंचते हैं। शिखर बाइक रेसर है। बजरंग मुंबई में नौकरी करता है।

लाडली भी शादी के बाद मुंबई आ जाती है। तीनों की जिंदगी में कई चीजें चलती है। जहां बजरंग को प्यार में धोखा मिलता है तो वहीं शिखर को जिससे प्यार है, वह उसके करियर की भलाई के लिए उससे दूर जाना चाहता है। एक तरफ लाडली अपने पति के अतीत से लड़ रही है। तीनों भाई-बहन एक-दूसरे का सहारा बनते हुए आगे बढ़ते हैं।

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कैसा है यारियां 2 का स्क्रीनप्ले और अभिनय?

इस बार दिव्या की जगह निर्देशन की बागडोर कई प्रसिद्ध म्यूजिक वीडियोज और लकी: नो टाइम फार लव, सनम तेरी कसम फिल्मों का निर्देशन कर चुके राधिका राव और विनय सप्रू ने संभाली है। दोनों म्यूजिक वीडियो में एक कहानी रचने के लिए जाने जाते हैं, जिसकी झलक इसमें भी दिखेगी।

इस फिल्म में भी जिगरी दोस्त जैसे भाई-बहन के मजबूत रिश्ते के साथ, तीन कहानियों अलग-अलग प्रेम कहानी में उन्होंने कई भावनाओं को पिरोया है।

हालांकि, तीनों भाई-बहन के बीच का रिश्ता इतना अटूट कैसे बना, उसको लेकर कोई बैकस्टोरी नहीं है। कई जगहों पर विनय और राधिका की लिखी यह पटकथा बिखरती है। फिल्म की अवधि कम करने की पूरी गुंजाइश थी।

लाडली की कहानी में एक शुरुआत, मध्य और अंत है, जबकि सबसे कमजोर कहानी बजरंग की है, जिसमें न उसके परिवार का जिक्र है, न ही उसके टूटे दिल पर किसी ने मरहम लगाया। जब उसे प्यार भी होता है तो उसे जल्दबाजी में निपटा दिया जाता है।

वहीं, शिखर की कहानी दिलचस्प है, लेकिन पिता के साथ उसके कड़वे रिश्तों की गहराई में लेखक नहीं जाते हैं। बाकी किरदारों की कहानी गढ़ने में वह चूक जाते हैं। फिल्म में बताया गया है कि लाडली एक बीमारी से स्वस्थ हो चुकी है। उस बीमारी का जिक्र न भी होता तो कहानी में कोई फर्क नहीं पड़ता। क्लाइमैक्स में मोटरबाइक की प्रतिस्पर्धा थोड़ी सी फिल्मी लगती है। कजिन्स बाय ब्लड, फ्रेंड्स बाय च्वाइस का संदेश अच्छा है।

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अब निर्देशन की बजाय अभिनय की राह चुन चुकीं दिव्या खोसला कुमार इस रोल में जंचती हैं। शादी से पहले की नादान लड़की से लेकर शादीशुदा महिला की भूमिका में वह आसानी से चली जाती हैं। मीजान अपने अभिनय और आवाज से चौंकाते हैं।

वह एक ही किरदार में भाई, दोस्त और प्रेमी इन सारी जिम्मेदारियों को शिद्दत से निभा जाते हैं। पर्ल भावुक दृश्यों में सहज लगते हैं। हालांकि, उन्हें कहानी में बाकी दो के मुकाबले जगह कम मिली है। एक समय बाद तो लगता है कि पर्ल का किरदार कहानी का हिस्सा हैं भी या नहीं।

लिलेट दुबे और मुरली शर्मा स्क्रीन पर अपना अनुभव दिखाते हैं। इस फिल्म को म्यूजिकल फिल्म भी कहा जा सकता है, क्योंकि इसके गाने ऊंची ऊंची दीवारें…, सौरे घर…, बेवफा तू… अच्छे बने हैं।

अवधि- 150 मिनट



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