ब्लैक एंड व्हाइट किरदारों से हटकर ग्रे शेड्स वाले किरदारों ने डिजिटल प्लेटफार्म पर बटोरी लोकप्रियता
प्रियंका सिंह। कभी-कभी लगता है कि अपुन ही भगवान है..अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी का यह संवाद डिजिटल प्लेटफॉर्म पर जब गूंजा, तो उन किरदारों को एक पहचान मिली, जो शायद सिनेमा में होते तो निगेटिव कहलाते, लेकिन डिजिटल प्लेटफॉर्म पर ग्रे किरदार कहलाए जाते हैं और वेब सीरीज के हीरो होते हैं। डिजिटल प्लेटफॉर्म पर जब ब्लैक एंड व्हाइट किरदारों से हटकर ग्रे शेड्स वाले किरदारों को दिखाया गया, तो वह फिल्मी विलेन की तरह बस यूं ही बुरे नहीं थे, उनकी एक कहानी थी। शायद यही वजह है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर जितने भी वेब सीरीज आ रहे हैं, उनमें ग्रे किरदारों की संख्या ज्यादा है। मिर्जापुर 3, रंगबाज डर की राजनीति जैसे तमाम शोज आएंगे। ग्रे किरदारों की प्रसिद्धी, इन्हें लिखने के पीछे की प्रक्रिया, कलाकारों का इन किरदारों से लगाव जैसे कई मुद्दों को समेटती स्टोरी।
ग्रे किरदारों में एक जादू है: मिर्जापुर और इनसाइड एज वेब सीरीज के क्रिएटर, निर्देशक और स्क्रीनराइटर करण अंशुमन ग्रे किरदारों की प्रसिद्धी की वजह बताते हुए कहते हैं कि वेब सीरीज की खास बात यही है कि इस पर कलाकारों को रियलिस्टिक किरदार निभाने का मौका मिलता है। वह किरदार जो आपकी और हमारी तरह होते हैं। एक परफेक्ट अच्छा और आदर्श इंसान तो वास्तविक जिंदगी में शायद ही कोई हो। पूरी तरह से निगेटिव लोग भी कम ही होते हैं। फिल्मों का बिजनेस अलग है, क्योंकि इन दिनों फिल्में ज्यादातर बच्चों को भी ध्यान में रखकर बनाई जा रही हैं, ताकि मुनाफा बढ़ाया जा सके। फिल्मों में किरदार ब्लैक या व्हाइट, बुरा या अच्छा, टू डायमेंशनल या सरल होते हैं। सीरीज में मुख्य अंतर यही होता है कि किरदार का कोई सेट ग्राफ नहीं होता है। फिल्मों में जो हीरो का सफर होता है, वह लगभग हर फिल्म में एक जैसा ही होता है। ये ग्राफ सालों से ऐसे ही सेट है। वेब सीरीज का पूरा खेल ही अलग है। किरदार हर सीजन के साथ विकसित होते हैं। अच्छा इंसान भी गलत चीजें करने लग जाता है और बुरे इंसान के साथ भी कई बार सहानुभूति हो जाती है। मिर्जापुर के पहले सीजन के डार्क किरदार मुन्ना भैया की अगर बात करें, तो कई जगहों पर उसके लिए भी बुरा लगता है। जब उसको अपने कंपाउडर दोस्त को मारना पड़ता है। यही ग्रे किरदारों का जादू है।
दर्शकों से प्यार और नफरत का कनेक्शन: रंगबाज फिरसे और रंगबाज डर की राजनीति में शायद ही कोई ऐसा किरदार रहा होगा जो ग्रे नहीं है। इस सीरीज के निर्देशक सचिन पाठक कहते हैं कि जो ग्रे किरदार होते हैं, उनसे दर्शकों का प्यार और नफरत वाला कनेक्शन होता है। ग्रे किरदार का कुछ ऐसा कर जाना, जो आम बात नहीं है, वह आम लोगों के लिए हीरोइक होता है, क्योंकि वह चीजें वह कभी नहीं करेंगे। ग्रे किरदार गलत चीजें करने के बाद किस ट्रॉमा से गुजरता है, वह देखना दर्शकों के लिए दिलचस्प होता है। जिंदगी के मोड़ पर हर कोई ग्रे होता था। ग्रे किरदार को देखने के लिए दर्शकों में उत्सुकता इसलिए भी होती है कि वह देखना चाहते हैं कि उसकी जिंदगी कहां से कहां पहुंचती है। पैदाइशी कोई बुरा नहीं होता है, वह अपने जीवन में किस मनोस्थिति से गुजरते हैं, वह दर्शकों को आकर्षित करता है। इन ग्रे किरदारों का एक पूरा ट्रैक बनता है। सीजन में उस किरदार का आर्क कैसे होगा, किरदार का सफर कहां से शुरू होगा, कुछ चीजें करने के बाद वह कैसा बन जाएगा, वह सब देखना होता है। कलाकार की भी पिछले किरदारों की एक छवि होती है, उस इमेज को तोड़ना भी मुश्किल होता है। हम ग्रे किरदार को जब बनाते हैं, तो उसका भाव क्या होगा, उसका बचपन कैसा होगा, क्या उसके साथ कुछ गलत हुआ है, उन चीजों की जड़ों तक जाते हैं, फिर भले ही वह चीजें सीरीज में न दिखाई जाएं। अगर यह सब नहीं करेंगे, तो बिना वजह उस किरदार का ग्रे या बुरा होना जस्टिफाइड नहीं होगा।
दर्शकों का टेस्ट बदला है: कालीन भैया के किरदार में दर्शकों का दिल जीतने वाले अभिनेता पंकज त्रिपाठी कहते हैं कि मुझे लगता है कि अच्छे से लिखे और निभाए किरदार को लोग याद रखते हैं। पहले की फिल्मों में सिर्फ अच्छे या बुरे किरदार होते थे। अब ऐसा नहीं होता है। दर्शकों का टेस्ट भी वर्ल्ड सिनेमा देखकर बदल गया है। कालीन भैया के किरदार ने मेरे लिए काफी कुछ बदला है। पहले कई बार अच्छे एक्टर को मेनस्ट्रीम कंटेंट में मुख्य किरदार निभाने की कल्पना नहीं करते थे, लेकिन डिजिटल प्लेटफॉर्म ने उस भ्रम को तोड़ दिया है। अच्छे स्टार की स्टारडम डिजिटल प्लेटफॉर्म की वजह से बढ़ गई है। ऐसा नहीं है कि सिनेमा में कलाकार ने ग्रे किरदार नहीं निभाए। सत्या फिल्म में भीकू म्हात्रे का किरदार काफी प्रसिद्ध हुआ था। लेकिन पहले फिल्म को उस तरीके से मार्केट नहीं किया जाता था। डिजिटल प्लेटफॉर्म की वजह से वह पहुंच बढ़ गई है। सिनेमा में तो चीजें कितने थिएटर मिलेंगे उस पर निर्भर करती हैं। डिजिटल प्लेटफॉर्म पर नंबर्स की चिंता नहीं है।
परफॉर्मेंस का स्कोप: सेक्रेड गेम्स वेब सीरीज में गणेश गायतोंडे का किरदार निभाने वाले नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने इंटरव्यू के दौरान कहा था कि हमारे यहां खलनायकी में ही अच्छी परफॉर्मेंस होती है और हीरो की तुलना में खलनायकी और ग्रे किरदारों में परफॉर्म करने का स्कोप मिलता है, क्योंकि वह हीरो के विरूद्ध होता है। वास्तविक जीवन में इंसान में कुछ अच्छाइयां, बुराई होती ही हैं। उसी से वह इंसान बनता है। मुझे खुद परफेक्ट किरदार पसंद नहीं आते हैं। गणेश गायतोंडे के किरदार में बहुत सी ऐसी चीजें हैं, जो बड़े से बड़े अच्छे लोगों में भी नहीं होगी। वहीं आश्रम वेब सीरीज से बॉबी देओल को दमदार कमबैक मिला। बॉबी को जब किरदार ऑफर हुई था, तब उन्होंने किसी को अपने काशीपुरवाले बाबा निराला के किरदार के बारे में नहीं बताया था। उनको लगा लोग कहेंगे कि इतना निगेटिव किरदार क्यों निभा रहा है। लेकिन उन्हें उस किरदार में परफॉर्मेंस का स्कोप दिखा। बॉबी कहते हैं कि पहले जब मैं फिल्में किया करता था, तो उस जमाने में एक बार अगर इमेज बन गई, तो उससे बाहर आना मुश्किल था। मेरी इमेज एक अच्छे और अमीर किरदार निभाने वाले की बन गई थी। डिजिटल प्लेटफॉर्म की वजह से उस इमेज को बदलने का मौका मिला। आश्रम के लिए जब मुझे प्यार मिला, तो मैं खुद हैरान था। मैं एक्टर हूं, इसलिए चाह रहा था कि ऐसा कोई किरदार करूं, ताकि देख सकूं कि मुझमें उन किरदारों को निभाने की क्षमता है या नहीं।
बिना तैयारी नहीं किए जाते ग्रे किरदार: रंगबाज डर की राजनीति वेब सीरीज में अभिनेता विनीत कुमार सिंह ने एक ऐसे राजनेता का किरदार निभाया है, जो दबंग है। विनीत कहते हैं कि ग्रे किरदारों को बिना तैयारी के नहीं किया जा सकता है। ग्रे किरदार में कई परतें होती हैं। ऐसे में उन्हें निभाने की जिम्मेदारी और स्कोप बढ़ जाता है। जिम्मेदारी इसलिए बढ़ जाती है, क्योंकि आपको फिर तैयारी करनी पड़ेगी, क्योंकि वह किरदार बहुत कुछ डिमांड करता है। मैं किरदार के दिमाग को समझने की कोशिश करता हूं कि वह किरदार कैसे सोचता होगा, किस परिस्थिति में कैसे रिएक्ट करता होगा और सबसे खास की उसके बुरे होने के पीछे की वजहें क्या है। जब उस ग्रे किरदार का माइंड समझ आ जाता है, तो वह किरदार समझ आ जाता है। किरदार को समझना बहुत जरूरी होता है क्योंकि वह आठ से दस घंटे के एपिसोड में दिखने वाला है। जब किसी ग्रे किरदार को निभाता हूं, तो मेरे आसपास के लोगों को पता चल जाता है। यही वजह है कि मैं लोगों से कटा-कटा रहता हूं, क्योंकि लोग मुझे समझ नहीं पाएंगे। लोग मुझसे मिलने आते हैं, लेकिन इस तरह के किरदारों की डिमांड ऐसी होती है कि उसकी तैयारी में मेरा कुछ हिस्सा उस किरदार की तरह हो चुका होता है। मैं किसी सिचुवेशन में अलग तरह से रिएक्ट कर सकता हूं। जब मैं शूट पर रहता हूं, तो घर वालों से कहता हूं कि सेट पर मत आया करो। जब आप जिम्मेदारी को निभाते हैं, तो ऐसे किरदारों का स्कोप बढ़ जाता है।
आजादी का अहसास: अभिनेता अक्षय ओबेरॉय फ्लेश, हाई जैसी सीरीज में ग्रे किरदारों में नजर आए हैं। वह कहते हैं कि ग्रे किरदार आजादी का अहसास कराते हैं। मुझे डार्क और ग्रे शेड वाले किरदारों को करने में मजा आता है। मैं वास्तविक जीवन में अच्छा इंसान हूं, किसी की बुराई नहीं करता हूं, मेरी सोच पॉजिटिव है। एक कलाकार के तौर पर बिल्कुल अपोजिट किरदार निभाने का मौका कम ही मिलता है। ऐसे किरदार मुझे एक एक्टर के तौर पर विकसित करते हैं। ऐसे किरदार निभाना एक नशे के जैसा है। इन किरादरों को निभाने में एक आजादी होती है। कलाकार अपने काम में आजादी ढूंढता है, जब वैसा काम मिले तो कलाकार को अपने किरदार में खो जाना चाहिए। ऐसे रोल जब आते हैं, तो मेरे लिए खोना आसान होता है, क्योंकि मैं वैसा नहीं हूं। मैं खुद को भूल कर वह किरदार निभाता हूं।