कारगिल दिवस विशेष: 'शेरशाह' से लेकर 'धूप' तक, कारगिल युद्ध में भारत के शौर्य और पराक्रम को दर्शाती हैं ये फिल्में


स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। भारत-पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध में विजय ने प्रत्येक देशवासी को गौरवान्वित किया। हृदय में गर्व की अनळ्भूति के साथ नमन करें उन वीर सैनिकों को जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए आठ मई से 26 जुलाई, 1999 के बीच लद्दाख में कारगिल की चोटियों पर लड़े गए इस युद्ध में प्राणोत्सर्ग किए। ‘आपरेशन विजय’ की गौरवगाथा को बड़े पर्दे पर बखूबी दर्शाया गया है। कारगिल दिवस (26 जुलाई) पर स्मिता श्रीवास्तव का आलेख…

भारत और पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध से कुछ महीने पहले ही लाहौर घोषणा पत्र परहस्ताक्षर किए थे। यह समझौता शांति और सुरक्षा के माहौल के निर्माण और सभीद्विपक्षीय संघर्षों को हल करने के सिद्धांत को मान्यता देता है। उसके बावजूद पाकिस्तानअपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आया। पाकिस्‍तान ने द्रास और कारगिल कीपहाड़ियों पर कब्‍जा कर लिया था। वे पूरी तैयारी के साथ आए थे। वे अपने साथ भारीमात्रा में हथियार और खाने पीने का सामान भी लेकर आए थे। भारतीय सेना कोपाकिस्तान की इस नापाक साजिश की भनक लगी तो पाकिस्तानी सेना को सबकसिखाने के लिए उसके खिलाफ ऑपरेशन विजय शुरू किया गया। पाकिस्‍तानी सेना कोखदेड़ने के लिए कारगिल युद्ध दोनों देशों के बीच आठ मई से 26 जुलाई, 1999 के बीचलद्दाख में कारगिल की चोटियों पर लड़ा गया। इस युद्ध के जरिए पाकिस्तान कश्मीरऔर लद्दाख को जोड़ने वाली एकमात्र सड़क को अपने कब्जे में लेना चाहता था। साथ हीसियाचिन ग्लेशियर से भारतीय सेना को भी हटा देना उसका मकसद था। दो महीने तकचले युद्ध में भारतीय सेना के जांबाज सैनिकों ने 18 हजार फुट से ज्यादा ऊंची चोटियोंपर बैठे पाकिस्‍तानी सेना को कड़ी शिकस्‍त दी। उसकी सेना को मार भगाया औरउसके कब्‍जे से 26 जुलाई को आखिरी चोटी भी फतह कर ली गई थी। इस दिन कोकारगिल दिवस के रुप में मनाया जाता है। पर्वतीय लड़ाई में यह भारत के सबसे कठिनअभियानों में से एक था। बाद में पाकिस्तान के दो प्रधानमंत्रियों ने स्वीकार किया था

कारगिल युद्ध पाकिस्तान की सबसे बड़ी भूल थी।

भारतीय सेना द्वारा युद्ध के मैदान पर प्रदर्शित बेजोड़ बहादुरी,धैर्य और दृढ़ संकल्प कीगाथा को हिंदी सिनेमा में भी कई फिल्मों में दर्शाया गया है। इनमें पिछले साल अमेजनप्राइम वीडियो पर रिलीज फिल्‍म शेरशाह कारगिल युद्ध में बलिदान हुए विक्रम बत्रा कीजिंदगानी पर आधारित थी। फिल्‍म में विक्रम की भूमिका में सिद्धार्थ मल्‍होत्रा जबकिउनकी प्रेमिका की भूमिका में कियारा आडवाणी थी। पिछले साल द्रास में इस फिल्‍म केट्रेलर लांच के दौरान फिल्म के कलाकार,निर्देशक विष्णु वर्धन, निर्माता करण जौहर, चीफऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत, विक्रम बत्रा के जुड़वा भाई विशाल बत्रा समेतकारगिल बलिदानी के स्‍वजन मौजूद रहे। इस दौरान मुझे भी कारगिल जाने कासौभाग्य प्राप्‍त हुआ था। कारगिल की प्राकृतिक नैसर्गिक खूबसूरती मनमोह लेती है। वहां जाकर लगा था वाकई जन्‍नत कहीं है तो यहीं है। नीला आसमान, चारों तरफ बर्फीलेपहाड़,हरी भरी वादियों को देखकर लग रहा था कि ईश्‍वर ने अपनी इस कृति को बहुतशिद्दत से बनाया होगा। हमें एलओसी पर भी जाने का सौभाग्य प्राप्‍त हुआ। हजारों फीट की ऊंचाई पर अपने तिरंगे को देखने का वह अनुभव ताउम्र याद रहेगा।

ट्रेलर लांच का कार्यक्रम रात था पर हम दिन में ही द्रास पहुंच गए थे। वहां पर हमें बताया गया कि किस चोटी परविक्रम बत्रा ने जीत हासिल की थी। उस जगह को बत्रा प्‍वाइंट के नाम से जाना जाता है। उसऊंचाई को देखकर ही हमारे रोंगटे खड़े हो गए थे। ऐसे में सैनिकों ने किन कठिनहालातों में रात में उन चोटियों पर चढाई की और जीत हासिल की उसकी कल्‍पनाकरके ही हम सिहर गए थे। उस माहौल ने याद दिलाया कि युद्ध के दौरान 17 हजार फीट की ऊंचाई पर घने कोहरे में हमारे सैनिकों ने चढ़ना शुरु किया था। इस ऊंचाई पर सांस लेना मुश्किल हो जाता है पर मौसम भी सैनिकों के इरादों के आगे कमजोर पड़ गया था। उन्‍होंने किस तरह से रणनीति बनाई और चोटी फतेह की इसे शेरशाह में दर्शाया गया है। फिल्‍म के आखिर में दर्शाया गया है कि विस्फोट में घायल एक लेफ्टिनेंट को बचाने के लिए विक्रम अपने बंकर से निकले। हालांकि उनके बटालियन के सूबेदार ने उनसे कहा कि वह स्वयं न जाएं उन्‍हें जाने दें। पर विक्रम नहीं माने। वह घायल लेफ्टिनेंट को जब सुरक्षित स्‍थान पर ले जाने लगे तो एक गोली उनके सीन में जा लगी। वह खुद बलिदान हो गए, लेकिन लेफ्टिनेंट को बचाने में कामयाब रहे। विक्रम ने जीवित रहते हुए कहा था कि तिरंगा लहराकर आऊंगा या तिरंगे में लिपटकर। उन्‍होंने अपने इन शब्‍दों को सार्थक कर दिखाया था।

महज 24 साल की उम्र में उन्‍होंने बलिदान दे दिया।

वैसे इससे पहले दिसंबर, वर्ष 2003 में रिलीज जेपी दत्‍ता निर्देशित फिल्‍म एलओसी : कारगिल में अभिषेक बच्‍चन ने विक्रम बत्रा का किरदार निभाया था। संजय दत्त ,सुनील शेट्टी,सैफ अली खान, अक्षय खन्‍ना, मनोज बाजपेयी जैसे सितारों से सजी यह फिल्म तीन घंटे 57 मिनट की है। यह फिल्‍म कारगिल युद्ध की शुरुआत कैसे हुई से लेकर युद्ध लड़ने में सेना के जज्‍बे को दर्शाती है। इसमें सेना की अलग-अलग बटालियन का जिक्र है जो युद्ध का हिस्सा बनीं। इसके करीब छह महीने बाद 18 जून, 2004 को रिलीज रितिक रोशन,अमिताभ बच्‍चन और प्रिटीजिंटा अभिनीत फिल्‍म लक्ष्‍य भी कारगिल की पृष्‍ठभूमि में बनी थी। इस फिल्‍ममें देहरादून स्थित इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आइएमए) में चयन की प्रक्रिया से लेकर कारगिल में तैनाती को करण शेरगिल (रितिक रोशन) की कहानी के जरिए दर्शाया गया है। फरहान अख्‍तर निर्देशित इस फिल्‍म में आइएमए में एक सीन में सैन्‍य अधिकारी कहता है सबसे पहले देश, फिर आर्मी फिर अपने साथी और सबसे आखिर में अपनी जिंदगी का ख्‍याल। यह आइएमए से प्रशिक्षित आफिसर की पहचान से है।

इसी फिल्‍म में एक सीन में अमिताभ बच्‍चन का किरदार करण को अलग अलग ट्रॉफी दिखाते हुए कहता है कि यहट्राफीज, यह मेडल, सर्टिफिकेट अलग-अलग जंग में अलग-अलग फ्रंट पर इसी रेजिमेंटके बहादुर आफिसर और जवानों ने दिलाए हैं कभी जान पर खेलकर कभी जान देकर।इस रेजिमेंट ने हमेशा अपने मुल्‍क अपनी फौज को कामयाबी और जीत की खबर सुनाईहै। जिस वक्‍त तुमने ज्‍वाइन किया है यह तमाम ट्राफी और पुरस्‍कारों के साथतुम्‍हारा रिश्‍ता बन गया है। इनकी इज्‍जत और मान रखना तुम्‍हारा काम भी है। इसकाम के लिए तुम्‍हारे साथ सौ करोड़ लोगों का आशीर्वाद और विश्‍वास है। इस देश केसौ करोड़ लोग इस विश्‍वास के साथ सोते हैं कि मैं और तुम जाग रहे हैं। यह विश्‍वासबहुत बड़ी इज्‍जत है और बहुत बड़ी जिम्‍मेदारी भी। आखिर में युद्ध में देश की जीत ही करण का लक्ष्‍य बनती है और वो उसे हासिल करता है। यह फिल्‍म सैनिकों की कठिनाई से ज्‍यादा उनके जज्‍बे, साहस और बुद्धिमत्ता को दर्शाती है जो प्रतिकूल परिस्थिति में भी पीछे हटने को राजी नहीं हुए। उनके जुबान पर भारत माता का नाम रहा। आखिरी क्षण तक अपने देश की रक्षा के लिए लड़ते हैं। इस दौरान जहां कई पल गर्व से सीना चौड़ा कर देते हैं वहीं कुछ पल भावुक कर जाते हैं। यह याद दिला जाते हैं कि हम सुरक्षित हैं क्‍योंकि हमारे जवान सरहदों पर मुस्‍तैद हैं। उन्‍हें न भूलना।

वहीं फिल्‍म धूप कारगिल युद्ध में शहीद एक कैप्टन की कहानी पर आधारित थी। इसमें दिखाया गया था कि कैसे देश का भ्रष्ट सिस्टम शहीदों के सम्मान का मजाक उड़ाता है। फिल्‍म में संजय कपूर, गुल पनाग, ओम पुरी और रेवती जैसे कलाकार थे। युद्ध के मैदान में महिलाओं का कौशल भी देखने को मिला है। कोरोना काल में साल 2020 में डिज्‍नी प्‍लस हाट स्‍टार पर रिलीज जाह्नवी कपूर अभिनीत फिल्‍म गुंजन सक्‍सेना : द कारगिल गर्ल भी पसंद की गई थी। यह फिल्‍म कारगिल गर्ल के नाम से विख्‍यात हुई फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुंजन सक्‍सेना पर आधारित थी। कारगिल युद्ध के दौरान जब दोनों तरफ से गोलियां, राकेट लांचर चल रहे थे उस समय घायल जवानों को बचाने का जिम्‍मा फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुंजन सक्‍सेना को सौंपा गया था। उस समय महिला पायलट बैच की 25 पायलट में गुंजन भी शामिल थीं। कारगिल युद्ध में गुंजन ने 18 हजार फुट की उुंचाई पर चीता हेलिकाप्‍टर उड़ाया और भारतीय सैनिकों की मदद कर शौर्यगाथा में अपना नाम दर्ज कराया था। कई बार गोलियां और तोप के गोले उनके हेलिकाप्‍टर के नजदीक से गुजरे लेकिन गुंजन अपने मिशन पर केंद्रित रहीं।

फिल्‍मों में युद्ध में भारतीय सेना के कौशल, जवानों के साहस, उसकी विभीषिका दर्शाने के साथ यह फिल्‍में उसके परिणामों पर भी कहीं न कहीं बात करती हैं। यह बताना नहीं भूलती कि भारत युद्ध नहीं चाहता, लेकिन अगर थोपा जाएगा तो हमारी सेना उसका मुंहतोड़ जवाब देने के लिए हमेशा तैयार रहती हैं। यह फिल्‍में देश के वीर सपूतों को श्रद्धांजलि देने के साथ अपने सेना की बहादुरी को दुनिया तक पहुंचाती हैं। कारगिल दिवस पर हम उन सैनिकों को सलाम और नमन करते है जिन्‍होंने अपनी जान की परवाह किए बगैर मातृभूमि की खातिर अपने प्राण न्योछावर कर दिए। उन सैनिकों को जो देश की खातिर मैदान ए जंग में दुश्मनों से लोहा लेते हुए डटे रहे। उनकी शहादत और वीरता को याद करते हुए हम इतना ही कह सकता है सारे जहां से अच्‍छा हिंदोस्‍तां हमारा।



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